जब भी मौलिक अधिकार की सुरक्षा की बात आती है तो हमारे ध्यान में सुप्रीम कोर्ट का नाम सबसे पहले आता है।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 सुप्रीम कोर्ट को और हाईकोर्ट को यह शक्ति देती है कि वह पांच प्रकार के रिट (5 Types of Writs) जारी कर सकती है।
यह रिट मानव अधिकार की रक्षा के लिए बनाया गया है। तो चलिए देखते हैं रिट का मतलब क्या होता है और ये रिट कौन-कौन से हैं –
रिट - Writ in Hindi
रिट एक लिखित आदेश है जो सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय द्वारा भारतीय नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ संवैधानिक उपचार का आदेश देता है।
भारतीय संविधान का भाग 3 नागरिकों के मौलिक अधिकार की बात करता है। इसके बारे में जानकारी अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक दी गई है।
आर्टिकल 32 यह कहता है कि अगर किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार छीना जा रहा है या किसी अन्य रूप से उसके मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है तो वह व्यक्ति खुद या अपने किसी संबंधी के द्वारा सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पांच प्रकार के रिट (5 Types of Writs) जारी कर सकता है। आर्टिकल 32 के इसी शक्ति के कारण सुप्रीम कोर्ट को मौलिक अधिकार का रक्षक और अनुदानकर्ता (Protector & Granter) माना गया है।
"डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने आर्टिकल 32 को संविधान का दिल और आत्मा (Heart & Soul of The Constitution) कहा है।"
रिट (Writ) जारी करने की शक्ति
आर्टिकल 32 में जो शक्तियां सुप्रीम कोर्ट के पास है वही शक्तियां आर्टिकल 226 के अनुसार हाई कोर्ट के पास भी है। तो इन दोनों आर्टिकल में जो शक्तियां दी गई हैं वह नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए दी गई है।
अगर किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार का हनन हो रहा हो तो वह व्यक्ति सबसे पहले राज्य का हाई कोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
लेकिन यह जरूरी नहीं है कि व्यक्ति सबसे पहले हाईकोर्ट में ही अपनी याचिका दायर करें वह चाहे तो सुप्रीम कोर्ट में भी जा सकता है लेकिन इसके लिए उसे कारण बताना आवश्यक होगा कि वह पहले हाई कोर्ट क्यों नहीं गया।
रिट (Writ) द्वारा मौलिक अधिकार की रक्षा
भारतीय संविधान के द्वारा जो नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए गए हैं अगर उनकी रक्षा नहीं की जाएगी तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। इसीलिए इन फंडामेंटल राइट की रक्षा हेतु संविधान में चार प्रावधान है।
जिसमें पहला है आर्टिकल 13 जो न्यायिक समीक्षा की बात करता है। इसके बाद है आर्टिकल 359 जो यह कहता है कि आपातकाल स्थिति के अलावा नागरिकों के मौलिक अधिकार को छिना नहीं जाएगा।
तीसरा और चौथा आर्टिकल 32 और आर्टिकल 226 है जिसमे इन्ही 5 प्रकार के रिट (5 Types of Writs) के बारे में बताया गया है। अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को और हाईकोर्ट पांच प्रकार के रिट (5 Types of Writs) जारी कर सकती है। यह रिट मानवाधिकार या किसी भी सम्बंधित मामले में हाई कोर्ट द्वारा जारी किया जा सकता है।
आर्टिकल 32 और आर्टिकल 226 में अंतर
हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों के पास ही यह शक्ति है कि दोनों की याचिका जारी कर सकते हैं लेकिन फिर भी दोनों में दो महत्वपूर्ण अंतर है जो निम्नलिखित है –
- आर्टिकल 32 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के पास यह शक्ति है कि वह सिर्फ मौलिक अधिकार से जुड़े मामले में ही याचिका जारी कर सकते हैं वही हाई कोर्ट मौलिक अधिकार के मामले में तो रिट जारी कर ही सकता हैं लेकिन किसी अन्य मामले में भी याचिका जारी कर सकता हैं।
- आर्टिकल 32 एक फंडामेंटल राइट है जबकि आर्टिकल 226 कोई फंडामेंटल राइट नहीं है।
रिट के प्रकार (Types of Writs)
रिट पांच प्रकार के होते है और सभी लैटिन शब्द है। जो निम्नलिखित है –
- Habeas Corpus
- Mandamus
- Certiorari
- Prohibition
- Quo Warranto
बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण रिट है जिसका तात्पर्य होता “To Have a Body” है। यह सबसे ज्यादा पावरफुल और सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला याचिका है।
इसका इस्तेमाल तब होता है जब किसी व्यक्ति को गैर कानूनी तरीके से हिरासत में रखा जाता है ऐसे में उसके परिवार वाले या उसके दोस्त बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का इस्तेमाल कर सकते हैं।
ऐसे में हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट उस व्यक्ति को हिरासत में रखने का कारण पूछ सकती है और हिरासत यदि गैरकानूनी होने पर उसे तत्काल रिलीज करने का आदेश दे सकती है।
बन्दी प्रत्यक्षीकरण का इस्तेमाल नीचे बताए गए चार कंडीशन में नहीं किया जा सकता –
- हिरासत वैध होने पर (Detention is Lawful)
- न्यायालय की अवमानना करने पर (Contempt of Court)
- हिरासत अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर होने पर (Detention is Outside The Jurisdiction of the Court)
- नजरबंदी सक्षम न्यायालय द्वारा होने पर (Detention is by Competent Court)
Mandamus
‘Mandamus’ का अर्थ है “we command” (अर्थार्त हमारा आदेश है). इस याचिका के द्वारा आप किसी सार्वजनिक अधिकारी को उसकी सार्वजनिक कर्तव्य करने के लिए कह सकते हैं। इस याचिका का इस्तेमाल करने के लिए सार्वजनिक कर्तव्य होना अनिवार्य है।
Certioroari
इसका अर्थ “To Be Certified” होता है। इस याचिका का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट के द्वारा और हाई कोर्ट के द्वारा किया जाता है जिससे वह निचली अदालत को आदेश दे सकते हैं कि वे अपना रिपोर्ट हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रिव्यु के लिए सबमिट करें।
रिव्यु में यह देखा जाता है कि निचली अदालत द्वारा दिया गया जजमेंट कहीं अवैध दे तो नहीं है। अगर निचली अदालत का जजमेंट अवैध होता है तो उसे समाप्त करना (Quash) कर दिया जाता है।
Prohibition
इसका अर्थ “to forbid” होता है। अगर आपको ऐसा लगता है कि निचली अदालत जो जजमेंट सुनाने वाले हैं वह अवैध होने वाला है तो आप “Prohibition” का इस्तेमाल कर सकते हैं।
Prohibition और Certioroari में बहुत ही कम अंतर है। Certioroari अवैध जजमेंट सुनाने के लिए बाद इस्तेमाल किया जाता है जबकि Prohibition किसी भी जजमेंट को सुनाने से पूर्व इस्तेमाल किया जाता है।
Quo Warrento
Quo Warrento का मतलब “By What Authority” होता है। इस यहिका का इस्तेमाल करके उच्च न्यायलय या सर्वोच्च न्यायलय किसी भी सरकारी अधिकारियों से यह पूछ सकते है की अपने किस अधिकार से इस सार्वजनिक कार्यालय को ग्रहण किये है।
निष्कर्ष
तो ये थे पांच प्रकार के रिट (Writs in Hindi), जिसका इस्तेमाल हमने आपको संछेप में बतलाने का प्रयत्न किया है। इन पांचो रिट (Types of Writs) का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट कर सकती है। किसी भी प्रकार की अत्यधिक जानकारी के लिए निचे कमेंट कर सकते है।