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न्यायाधीश, दंडाधिकारी और न्यायमूर्ति में अंतर | Difference between Judge, Magistrate & Justice

अपने जज और मजिस्ट्रेट यह दो शब्द तो जरूर ही सुना होगा। आम तौर पर यह दो शब्द सुनने में एक जैसे ही प्रतीत होते है लेकिन ऐसा नहीं है न्यायाधीश, दंडाधिकारी और न्यायमूर्ति इनमे काफी अंतर होता होता है।

इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको न्यायाधीश, दंडाधिकारी और न्यायमूर्ति में अंतर (Difference between Judge, Magistrate & Justice in Hindi) बताएँगे, हमें यकीन है इस लेख को पढ़ने के बाद आपको कोई और लेख पढ़ने की जरुरत नहीं पड़ेगी। तो चलिए शरू करते है –

न्यायमूर्ति (Justice)

भारत में तीन प्रकार के कोर्ट स्थापित किए गए हैं जिसमें पहला है सुप्रीम कोर्ट, जिसे भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी कहते हैं क्योंकि इसका न्यायिक क्षेत्र संपूर्ण भारत पर होता है। 

इसके बाद आता है हाई कोर्ट, जो कि प्रत्येक राज्य में अलग अलग होता है जिसे उच्च न्यायालय भी कहते हैं और इसका न्याय क्षेत्र संपूर्ण राज्य पर होता है। इसके बाद आता है जिला न्यायालय, जिसका अधिकार क्षेत्र संपूर्ण जिले पर होता है। 

हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जो केस की सुनवाई करते हैं उन्हें न्यायमूर्ति कहा जाता है और जिला न्यायालय में जो केस की सुनवाई करते है उन्हें Judge कहा जाता है, इसे निचे विस्तार से बताया गया है।

न्यायाधीश और दण्डाधिकारी में अंतर (Difference Between Judge and Magistrate)

प्रत्येक जिला स्तर पर जो न्यायालय होता है उसे जिला एवं सत्र न्यायालय (District & Session Judge) कहा जाता है। जज और मजिस्ट्रेट में अंतर को समझने के लिए आपको यह समझना आवश्यक है कि जिला एवं सत्र न्यायालय में पदों का विभाजन किस प्रकार से होता है। 

जिला एवं सत्र न्यायालय में दो प्रकार के केस की सुनवाई की जाती है पहला सिविल केस दूसरा क्रिमिनल केस। इसीलिए यहां दो प्रकार के कोर्ट होते हैं पहला सिविल कोर्ट दूसरा क्रिमिनल कोर्ट।

सिविल कोर्ट जिसमें सिविल केस की सुनवाई की जाती है वही क्रिमिनल कोर्ट जिसमे क्रिमिनल केस की सुनवाई की जाती है। तो जब कोई व्यक्ति सिविल केस की सुनवाई करता है तो उसे जिला न्यायाधीश कहते हैं। 

वही जब यही व्यक्ति क्रिमिनल केस की सुनवाई करता है तो इसे दण्डाधिकारी कहते है जिनका पद आगे बढ़ कर सत्र न्यायाधीश तक होता हैं।

न्यायाधीश और दण्डाधिकारी में पदों का विभाजन

जब कोई व्यक्ति जुडिशरी की परीक्षा को पास करके जज बनता है तब वह व्यक्ति सीधे न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट के पद पर नहीं होता। सिविल मामलों और क्रिमिनल मामलों में पदों का विभाजन अलग अलग होता है इन पदों का विभाजन आप नीचे देख सकते हैं –

[CIVIL COURTS] – Civil Judge

  • Civil Judge II
  • Civil Judge I
  • Assistant District Judge
  • Additional District Judge
  • District Judge

[CRIMINAL COURTS] – Judicial Magistrate

  • Judicial Magistrate II
  • Judicial Magistrate I
  • Chief Judicial Magistrate
  • Assistant Session Judge
  • Additional Session Judge
  • Session Judge

आपको यह बात भी जानना चाहिए की एक जज की शक्ति हमेशा मजिस्ट्रेट से ज्यादा होती है।

निष्कर्ष 

हमें उम्मीद है की आपको अच्छे से समझ आ गया होगा की न्यायधीश, दंडाधिकारी और न्यायमूर्ति में क्या अंतर होता है फिर भी अगर कुछ पूछना हो तो आप हमें निचे कमेंट कर सकते है। 

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