2021 के महत्वपूर्ण मामले | Top Cases of 2021

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अगर आप किसी भी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो आपको 2021 के महत्वपूर्ण केसेस (Top Cases of 2021) के बारे में जरूर ही जानना चाहिए। नीचे हम आपको 2021 के महत्वपूर्ण मामलो के बारे में बताएंगे तो चलिए शुरू करते हैं –

2021 के महत्वपूर्ण मामले | Top Cases of 2021

परमवीर सिंह सैनी बनाम बलजीत सिंह

यह केस पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरे को लगाने की बात करता है। 2020 में तमिलनाडु में जो हिरासत में हिंसा (Custodial Violence) हुआ था उसे नेशनल मीडिया ने भी दिखाया था। 

इसी तरह 2018 में शफी मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य के केस में भी नागरिकों के मौलिक अधिकार का हनन और हिरासत में हिंसा को देखने को मिला था। इसी बात को लेकर पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी कैमरा को लगाने की बात सामने आई।

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि देश में जितने भी पुलिस स्टेशन है उनमें सीसीटीवी कैमरा लगाया जाना चाहिए सिर्फ यही नहीं यहां पर ऐसे डिवाइस भी लगे होंगे जिनमें 1 साल तक की रिकॉर्डिंग सुरछित की जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कहां-कहां पर सीसीटीवी कैमरा लगाया जाना उचित है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस स्टेशन के साथ-साथ जितने भी पूछताछ एजेंसियां (Interrogation Agencies) है जैसे NIA, CBI आदि। 

यहां भी CCTV कैमरा लगाया जाना अनिवार्य है और यह कार्य सुचारू रूप से हो रहा है या नहीं इसकी जांच के लिए गृह मंत्रालय ने केंद्रीय निरीक्षण समिति का भी गठन किया है। 

इसी से मिलता-जुलता एक केस है जिसका नाम है डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य जिसमें यह बात साफ-साफ बताई गई है कि गिरफ्तार के समय, कैद के समय या पूछताछ के समय कौन-कौन से प्रोसीजर फॉलो करने होंगे।

सतीश रगड़े बनाम महाराष्ट्र राज्य

इस केस को त्वचा से त्वचा संपर्क मामला (Skin to Skin Contact Case) भी कहा जाता है। यह केस बात करता है एक 12 साल की बच्ची से है हुए हैं यौन हमला (Sexual Assault) के मामले से। 

ट्रायल कोर्ट ने दोषी को IPC – Outraging Modesty of a Women और POCSO एक्ट के Section 7 और 8 के अंतर्गत Sexual Assault के मामले में दोषी को सजा सुनाया गया। जिसके लिए उसे 3 साल की सजा हुई। 

इसके विरोध में दोषी ने मुंबई हाईकोर्ट में एक अपील फाइल की और कहा जो भी दोनों के बीच में हुआ वह कपड़ों के साथ हुआ कोई भी यहां पर Skin to Skin Touch नहीं हुआ इसीलिए जो पोक्सो एक्ट लगाया गया है वह गलत है और इसे हटाया जाना चाहिए। 

अगर दूसरी भाषा में कहें तो POCSO Act के लगने से अपराधी को 3 साल की सजा हो रही थी लेकिन अपराधी का कहना था कि Groping कपड़ों के साथ हुई है। 

इसलिए सिर्फ आईपीसी के अंतर्गत ही सजा सुनाया जाना चाहिए जो की सजा 3 साल से घटकर 1 साल की हो जाती है। इस केस के जजमेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने Stay लगा दिया।

भारत संघ बनाम के.ए. नजीब

यह केस त्वरित परीक्षण का मौलिक अधिकार (Fundamental Right of Speedy Trial) के बारे में बात करता है। आपने 2021 में या 2020 में UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के बारे में सुना होगा जो बात करता है "इंडिया के प्राथमिक आतंकवाद विरोधी कानून (Anti Primary Terror Legislation)" के बारे में। 

अगर किसी को इस एक्ट के अंदर गिरफ्तार किया जाता है तो उसे आसानी से बेल नहीं मिलती है लेकिन इस केस में अपराधी KA Najeeb को UAPA के अंतर्गत गिरफ्तार भी किया गया और उसे बेल भी दी गई।

2010 में एक हमलावरों का समूह एक प्रोफेसर पर अटैक कर देते हैं और उनका हाथ काट देते हैं और वहां जो भीड़ इकट्ठी होती है उन पर बम भी फेंक देते हैं। 

अटैकर्स का कहना था कि इस प्रोफेसर ने यूनिवर्सिटी एग्जाम का जो पेपर बनाया था वह तिरस्कारी (Blasphemous) था जो प्रॉफिट मोहम्मद को कष्ट पहुंचाना करता था और इन्हीं अटैकर्स में से एक KA Najeeb था।

इसके बाद 2015 में इसे गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद इसकी सारी बेल एप्लीकेशन रिजेक्ट होती रही। लेकिन जब केरला हाई कोर्ट में एक और बार उसकी बेल एप्लीकेशन लगाई गई तब तक इसकी गिरफ्तारी को करीब 5 साल बीत चुके थे और यह गिरफ्तारी बिना ट्रायल के था। 

इसी बात को ध्यान में रखते हुए केरला हाई कोर्ट ने शीघ्र परीक्षण (Speedy Trial) और न्याय तक पहुंचने के आधार पर इसे बेल दे दी गई। इसके विरोध में राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील फाइल की और कहा जो साधारण बेल की प्रक्रिया है या जो कानून है वह UAPA जैसी स्पेशल एक्ट पर लागू नहीं होगा 

खासकर तब जब नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी के पास नाजिम के खिलाफ एक ठोस सबूत मौजूद हो।

शाहीन वेलफेयर एसोसिएशन बनाम भारत संघ के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी भी व्यक्ति की जस्टिस में बिना कारण विलंब होता है तो यह उसका मौलिक अधिकार, आर्टिकल 21 का उल्लंघन है जिससे यह बेल के लिए एक मजबूत आधार बन जाता है। इसी बात को ध्यान में रखकर सुप्रीम कोर्ट ने केरला हाई कोर्ट के फैसले को सही कहा।

सौरव शर्मा बनाम अनुविभागीय मजिस्ट्रेट (Saurav Shrama vs. Sub-Divisional Magistrate)

अगर आप अपनी खुद की गाड़ी चलाते समय फेस मार्क्स नहीं लगाते हैं तो आप पर ₹500 का जुर्माना लगाया जयेगा यह किसी से जुड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट में एक रिट पिटिशन फाइल की गई यह पूछते हुए कि अगर कोई अपनी गाड़ी चलाते समय फेस मार्क्स नहीं लगाता है तो क्या उससे फाइन लिया जाना चाहिए या नहीं। 

इस रिट पिटिशन को दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि अगर कोई फेस मार्क्स लगाता है तो यह उसे खुद को भी बचाता है और उसके सामने वाले लोगों को भी बचाता है इसीलिए कोर्ट ने यह कहा कि फेस मार्क्स लगाया जाना अनिवार्य है।

जयश्री लक्ष्मणराव पाटिल बनाम. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री

इस केस का संबंध मराठा रिजर्वेशन से है 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग स्थापित की। इसके चेयरमैन थे जस्टिस गायकवाड। जिनका कहना था मराठाओं को एड्यूकेशन में 12% और पब्लिक सर्विस में 13% का आरक्षण मिलना चाहिए।

इसके बाद महाराष्ट्र सरकार एक एक्ट लेकर आती है जिसका नाम सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2019 है। इस एक्ट में मराठों को 16% तक आरक्षण दिया गया था। यहां पर यह जान लीजिए कि इंदिरा साहनी केस में आरक्षण की जो उच्च लिमिट थी वह 50% रखी गई थी।

लेकिन इस एक्ट के आने के बाद आरक्षण की सीमा 68% तक पहुंच गई थी इसीलिए इस केस को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया था कि क्या यह एक्ट मान्य है या नहीं। 

5 मई, 2021 को इस केस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक बड़ी बेंच ने यह कहा कि इंदिरा साहनी केस में जो 50% की सीमा तय की गई है उसे मानना अनिवार्य होगा।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा की जस्टिस गायकवाड ने जो शिक्षा में 12% आरक्षण और पब्लिक सेक्टर में 13% आरक्षण की बात कही है इसके लिए उन्होंने कोई बड़ा कारण नहीं बताया है। 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा की गायकवाड ने इस बात को क्लियर नहीं किया है कि मराठाओं को क्यों रिजर्वेशन मिलना चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने साथ में यह भी कहा कि 102 संविधान संशोधन अधिनियम के बाद राज्यों के पास इतनी शक्ति नहीं है कि वह खुद से बैकवर्ड क्लासेस स्थापित कर सकें। 

राज्य सिर्फ राष्ट्रपति से आरक्षण को लेकर सुझाव दे सकती है इसके बाद यह मुद्दा राष्ट्रपति और संसद का है की इसे आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं और सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट को रद्द कर दिया।

रचना बनाम भारत संघ

इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाली अभ्यार्थी ने एक पिटीशन फाइल किया जिसमें उन्होंने यह कहा कि कोविड-19 की वजह से उन्होंने अपना सिविल सेवा एग्जाम का अंतिम प्रयास नहीं दे पाई थी।

जिसके लिए उन्हें एक और मौका मिलना चाहिए लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी इस पिटीशन को रद्द करते हुए कहा कि कोई एक्स्ट्रा मौका नहीं मिलेगा।

तो यह थे 2021 के कुछ महत्वपूर्ण मामलो की जानकारी। अगर आपको कुछ पूछना हो या आपका कोई सुझाव हो हमें निचे कमेंट कर सकते है।

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