हेलो दोस्तों आपका स्वागत है हमारी वेबसाइट में। आज के इस आर्टिकल में आप शबनम बनाम यूपी राज्य (Shubnam Case in Hindi) केस के बारे में जानेंगे। इस केस का नाम सुनते ही रूह काँप जाती है और ऐसा कहा जाता है की जिस गांव में यह घटना हुआ वह आज भी लोग अपने बच्चे का नाम शबनम नहीं रखते।
हम यहाँ इस बारे में भी बात करेंगे की अगर किसी को कोर्ट द्वारा मृत्युदंड की आदेश दी जाती है तो उसके पास और किया क्या रास्ते होते हैं, तो चलिए शुरू करते हैं।
शबनम बनाम उत्तर प्रदेश (Shubnam Case in Hindi)
यह बात है आज से करीब 13 वर्ष पहले की, 14 अप्रैल 2008 को उत्तर प्रदेश के अमरोहा के बावन खेड़ी में शबनम का परिवार रहता था जिसमें 8 लोग थे। यहां शबनम की उम्र 25 साल है।
शबनम के पिता एक स्कूल टीचर थे और शबनम खुद डबल MA की हुई है और वो भी एक स्कूल में बच्चो को पढ़ाती थी। अब शबनम का अफेयर सलीम के साथ चलता है जो कि एक आठवीं पास लड़का था।
शबनम इस अफेयर के दौरान प्रेग्नेंट हो जाती है और अपने ही अफेयर की बात अपने घरवालों से करती है लेकिन उसके घर वाले गुस्सा हो जाते हैं। जिसके बाद शबनम ने सलीम के साथ मिलकर एक साजिश रची।
14 अप्रैल, को जब शबनम का परिवार खाना खाकर सोया हुआ था, उस खाने में शबनम ने नींद की दवाई मिला दी थी। जिसके कारण पूरा परिवार बेहोश हो गया था।
जिसके बाद आधी रात को शबनम ने अपने बॉयफ्रेंड सलीम को अपने घर बुलाया अब दोनों ने मिलकर परिवार के 7 लोगों की कुल्हाड़ी से मारकर हत्या कर दी।
उसने अपने 10 महीने के भतीजे को भी गला दबाकर मार डाला। खून करने के बाद सलीम वहां से भाग गया लेकिन शबनम वही रुकी रही और जब अगली सुबह हुई तब शबनम ने चिल्लाना शुरू किया और सब कोई को यह बतलाने लाने की कोशिश की किसी ने उसके परिवार को कुल्हाड़ी से मारकर हत्या कर दिया।
लेकिन पुलिस ने इस मामले की जांच पड़ताल शुरू करने के 1 हफ्ते के अंदर ही या यह पता लगा लिया कि यह खून किसी और ने नहीं बल्कि शबनम और सलीम ने ही किया है। यहां उनका अपराध साबित हो गया और दोनों जेल में चले गए। उसी साल 2008 में ही शबनम ने जेल के अंदर ही एक बेटे को जन्म दिया।
इसके बाद साल 2010 में अमरोहा सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुना दी जिसे 2013 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने और 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस सजा को कायम रखा।
इसके बाद 2015 में उत्तर प्रदेश के गवर्नर के पास शबनम ने मर्सी पिटिशन फाइल करती है यह कहते हुए की उसका एक छोटा बेटा है जिसके प्रति उसकी कुछ जिम्मेदारियां हैं लेकिन शबनम का मर्सी पिटिशन रिजेक्ट कर दिया जाता है।
इसके बाद साल 2016 में शबनम ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास एक और मर्सी पिटिशन फाइल करती हैं लेकिन यहां भी शबनम का पिटिशन रिजेक्ट कर दिया जाता है।
जनवरी 2020 में भी सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच जिसे न्यायमूर्ति एसजे बोबडे हेड कर रहे थे उन्होंने भी इस सजा को बरकरार रखा है। यह था पूरा शबनम बनाम यूपी राज्य मामला।
भारत में दया याचिका (Mercy Petition in India)
अगर किसी को मृत्युदंड यानी फांसी की सजा सुनाई जाती है तो उसके पास और क्या क्या रास्ते मौजूद होते हैं? सबसे पहले निचली अदालत द्वारा फांसी की सजा सुनाई जाती है फिर निचली अदालत के इस जजमेंट को हाईकोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है।
अगर यहां भी आप की फांसी की सजा बरकरार रहती है फिर इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जाता है। अगर यहां भी आप की फांसी की सजा बरकरार रख रहती है फिर आर्टिकल 137 के अनुसार रिव्यू पिटिशन फाइल किया जा सकता है।
लेकिन तब जब जजमेंट में कोई गलती हो या कोई नया सबूत मिला हो। रिव्यू पिटिशन को 30 दिनों के अंदर फाइल किया जाना आवश्यक है।
इसके बाद अगर रिव्यू पिटिशन रिजेक्ट हो जाता है तो मदद ली जाती है क्यूरेटिव पिटिशन की। अगर क्यूरेटिव पिटीशन भी रिजेक्ट हो जाती है तो बारी आती है मर्सी पिटिशन की।
मर्सी पिटिशन अंतिम होती है जब एक अपराधी के पास सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं तब बारी आती है मर्सी पिटिशन की।
भारतीय संविधान आर्टिकल 72 के अनुसार राष्ट्रपति को और आर्टिकल 161 के अनुसार राज्य के गवर्नर को मर्सी पिटिशन की शक्ति प्रदान करती है इसका इस्तेमाल करके राष्ट्रपति राज्य के गवर्नर या तो सजा को या तो कम कर सकते हैं या माफ कर सकते हैं।
दया याचिका की कोई समय सिमा नहीं होती है। अगर शबनम को इस केस में फ़ासी होती है तो वो भारत की पहली फ़ासी की सजा पाने वाली महिला होंगी।